कुछ शब्द बहुत दिनों से मन में घूमेर कर रहे थे, आपके साथ साझा कर रही हूँ...
कुछ आधा सा, कुछ अधूरा सा,
तुम्हारी आँखों में शायद?
पर मेरी आँखों में पूरा सा,
इश्क़।
कभी आज़ाद पंछी सी उड़ान,
कभी बुदबुदाते शब्दों की लड़खड़ाती ज़बान,
इश्क़।
कह कर भी अनकहे सवालों सा,
उस ख़ामोशी में ढूँढते जवाबों सा,
इश्क़।
पल में झील सी गहरायी,
पल में समुन्दर की अँगड़ायी,
इश्क़।
किताब के पन्नों में छुपा, सूखा सा गुलाब
या बस कोई बिसरी सी याद,
इश्क़।
कभी सुनी हुई कहानी,
कभी मीरा दीवानी,
इश्क़।
कभी सब के जैसा,
कभी सब से अलग,
इश्क़।
फिर भी है,
कुछ तुम में थोड़ा,
कुछ मुझमें शायद,
इश्क़ ।
-सुगंध
अच्छा है। 'लड़खड़ती' को ठीक कर लीजिये।
ReplyDeleteDhanyawad. Just noticed the typo
DeleteNice one , you can add more to it ,,I mean seems 'to be continued'
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